Subscribe to the annual subscription plan of 2999 INR to get unlimited access of archived magazines and articles, people and film profiles, exclusive memoirs and memorabilia.
Continueजिसका अन्तिम अंजाम ही मृत्यु है- एैसे ही मृत्युलोक में मनुष्य जन्म लेता है और जीता है- किंन्तु जीना और जीना जानना इन दोनों में बहुत ही अन्तर हैः जो इस अन्तर को समझता है वह जनम और जनम के फेरे से मुक्त हो जाता है और जो नहीं समझ सकता वह भव की राह में भूल जाता है, भटकता है, ठोकरें खाता है और मिट जाता है। अतः उसने कहाँ भूल की यह समझने के लिये सर्जनहार उसे पुनः सृष्टि में भेजता है-
उसी का नाम है “जनम जनम के फेरे।”
ऐसी ही एक जनम जनम के फेरे से मुक्ति पाने के लिये महापात्र प्रभू से हररोज प्रार्थना किया करते थे, पर उनकी पत्नी कमला को पुत्ररत्न बिना यह फेरा अधूरा लगता था अतः प्रभूने कमलो की गोद भरी- महापात्र ने बड़े वर्ष से पुत्र की जन्मकुण्डली दिखाई। भविष्यवाणीने एक नयी कहानी को जन्म दिया- जिसका एक पात्र रघू और दूसरा सती अन्नपूर्णा थे याने रघू के भाग्य में दो चीज़ें एक ही साथ आईं- आस्तिकता और नास्तिकता।
एक आस्तिक पिता के लिये नास्तिक पुत्र असह्य था इस लिये महापात्र रघू के चारों ओर भक्तिभावना का सरंजाम इकट्ठा कर दिया किन्तु रघू भगत बने ये कमला को पसंद न आया- और काम, क्रोध, मद, लोभ भी इसे वर्दास्त न कर सकेः चारों तत्त्वोंने रघू के शरीर में प्रवेश किया, नई नई रंगत पैदा की, परिणाम यह हुआ कि रघू भयंकर से भयंकर नास्तिक बन गया: और उसकी नास्तिकता महापात्र के लिए एक जटिल प्रश्न बन गई जिसका जवाब देने के लिये अन्नपूर्णा महापात्र की पुत्रवधू बन कर आई।
अन्नपूर्णा की आस्तिकता रघू को एकनाम का रहस्य समझायेगी- ऐसा महापात्र ने समझा- किन्तू रघूने अन्नपूर्ण की आस्तिकता पर नास्तिकता का भयंकर प्रहार प्रारम्भ किया।
सती की श्रद्धा और भक्ती की कसौटी प्रारम्भ हुई-रघू की नास्तिकता घर और बाहर दोनों के लिए हसह्य हो उठी। मन्दिर की पूजा रोक दी गई- वटवृक्ष की पूजा में भी रघू विघ्न बन गयाः सारा गांव महापात्र के खिलाफ हो गया अतः महापात्रने रघू को सुधारने के एवज में अपनी सारी मिल्कियत दे देने की घोषणा की। रघू को आस्तिक बनाने के लिये सुधारक आये पर सभी जहरीले सापों के दंसो से सुरधाम सिधारे- ब्रह्महत्या के आघात को महापात्र भी न सह सके- वे भी चल बसे- कमला ने भी अनुगमन किया पर अन्नपूर्णा की श्रद्धा न गई- उसने रघू को आस्तिक बनाया- पर विधिने तब नई चाल चली- अन्नपूर्णा और रघू एक दूसरे से अलग हो गये- अतः अन्नपूर्णा के चाचाने पुनर्विवाह करने के लिये अन्नपूर्णा को मज़बूर करना शुरू किया- सती के लिये जनम मरन का सवाल पैदा हुआः पति वापस अवश्य आयेंगे इस श्रद्धा के सहारे उसने जीवन छोड़ दियाः पर उसके सामने एक दीन पति की लाश लाई गई, अन्नपूर्णाने उसे स्वीकार नहीं किया आखिर श्रद्धा जीत गई- स्वार्थ हार गया “रघू जीवित है”- पर इसका प्रमाण न मिला- अतः गंगाधरने पुनर्विवाह की बाजी खेल ही डाली।
बारात द्वारा पर आई- बारात के साथ रघू भी आया- गंगाधर की बाजी पलट गई अतः रघू को ज़हर दिया- आरोप अन्नपूर्णापर लगया- अन्नपूर्णा कैद कर ली गई, गंगाधर रघू के शब को जलाने की तैयारी में लगा- किन्तु विधि की तैयारी कुछ दूेसरी ही थी।
रघू से अन्नपूर्णा अलग हो गई पर सती से सतीत्व अलग नहीं हुआ सतीत्वने प्रभूसे पुकार की- पुकार का जवाब आया-
जोग करो या राख रमावो, जप तप सब हैं झूठेः
करम को अपना धरम जो समझे, उसी के बन्धन छूटे,
परनाः- सांझ सवेरे सब को घेरे, इससे न कोई बचे रे ये है जनम जनम के फ़ेरेः